पडुकिया

              कन्नौजी बोली

                                      त्रैमासिक ई-पत्रिका

Magazine Cover

संपादकीय

“पड़ुकिया ” कनउजी क्षेत्र मइं एकु अइसो पखेरू हइ जाको सुभाव बिरुकुल्लि शान्त अउर निहाइत सूधो होतु हइ। अब सबरे विद्वान लोग जा सोचत हुइहइं के जाको नांव “पड़ुकिया” काए कउं धरो गओ हइ? तउ जाको जबाबु जू हइ के पडुकिया बहुतइ भोली, सीधी- सादी होति हइ ,बहुतइ मेहन्तिन,होति हइ । अइसेंइ कनउजी बोलीउ बहुत सीधरिया अउ सरल, निहायत मेहतिन लोगन की भाखा/ बोली हइ । जहां तकि जाके नांवकरन की बात हइ तउ जू नांव अपईं कन्नौज जजौ रजधानी हती जाके इद्द-गिद्द सबरे हींसा कउं अउर रियाइसत कउं “कान्यकुब्ज ” कन्नौज कहो जातु हतो,अउर आजऊ जाकउं कन्नौज कहो जातु हइ।हियां के लोग जो भाखा/ बोली बोलत हइं,वाकउं कन्नौजी,कनौजी,कन्नौजिया तीन नामन सइ बोल्त हइं। डाॅ ग्रियर्सन,अउर डाॅ धीरेन्द्र वर्मा नइं जे ई तीन नांव सुवीकार करे हइं। कन्नौज के लोग जाइकउं कनउजी कात हइं,अउर बोल्त हइं।जाके बोलिवे बारे इलाका कन्नौज, फर्रुखाबाद, शाहजहांपुर,हरदोई, पीलीभीत,कानपुर को पच्छिम हींसा, इटावा-मैनपुरी,औरैया,उन्नाव को सिरफ बांगरमऊ,बरेली , बदायूं, हइं। जाकी बोलिवे को ढंगु कछु- कछु दूरी पइ बदल्तु राहतु हइ।जामइं अवधी( बैसवारी) अउ ब्रजभाषा को असरु हइ ,मतलब जा दोऊ के मिलन सइ बनी हइ। कछु जाके खुद के सबद हइं। आजु जाको रूप कछु बदल्तु जाइ रहो हइ,पुरनियां लोग चले जाइ रहे अउर नए लोग सीखत नाईं हइं सो जाकी पहिचान छिपति जाइ रही हइ।वइसइं जा भाखा पइ कामु बहुतइ भओ हइ,डाॅ संतराम अनिल,अनौगी फर्रुखाबाद के डाॅ सुरेश चन्द्र त्रिपाठी जी नइं बहुतइ अच्छो अउर शोध वालो कामु करो हइ,अउर हमाई लिखी किताब ” मैंनपुरी की लोक सांस्कृतिक विरासत” मइं कनउजी को पूरो वियाकरण को अध्याय दओ हइ। जाई कड़ी मइं फतेहगढ़ डाॅ राज कुमार नइं कनउजी शब्दकोश लिखो, कन्नौज की रहिवे वाली की लखनऊ नवयुग कन्या महाविद्यालय मां हिन्दी की आचार्य नइं “गुइयां” नाम संग कनउजी लोक कथा संग्रह को संग्रह करो हइ। डाॅ राम शंकर कठेरिया जी नइं इटावा जनपद की सीमान्त बोलियों पइ शोध करो,श्री एन सी भटेले नइं इटावा के लोकगीतन कउं संग्रहीत करके प्रकाशित करवाओ।जाई सिलसिला मइं श्री अतुल पाठक गीतकार,मदन तिवारी,स्व प्रो रमेश तिवारी विराम जनकवि गिरिजेश आदित्य,श्री अभिनव मिश्रा,डा शिव कुशवाह,डा भारती मिश्रा को उपन्यास माई,छात्र पारस सैनी,डा सियाराम, डा वन्दना बाजपेयी,किसे विद्वान हइं जो कनउजी कउं जी- जान सी सजाइ- संवार रहे हइं। जा तिमाही पाती को मूल धेउ जू हइ के नयी पिढी कम सइ कम कनउजी कों बोलिबो सीखइ, जापइ शोध करइ। अउर उन नए बच्चन कउं तैआर करो- कराओ मसाला ( साहित्य) मिलइ। सरकार नइं तु अपओं कामु कद्दओ, नयी शिक्षा नीति मइं सबु कछु दइ दओ हइ। नई शिक्षा नीति के बिन्दु सं ४.११ मइं बच्चन कउं उनकी घर की भाषा/ बोली मइं सिछा दई जावइ,बिन्दु सं २२.५,२२.६ मइं काॅलेज अउर ऊंचे संस्थानन के लएं कहो गओ हइ के वे इलाका की बोली/ भाखा पइ पढ़ाई करवावइं।अनुसंधान कउं बढ़ावा देवइं। जाई सों जू कामु करबे को बीड़ा उठाओ हइ। वइसइं हमाओ कामु तउ हुइअ रहो हतो जामइं जिज्जी डाॅ अपूर्वा अवस्थी को निग्गां हांतु हइ। उन्नेइं हमसइ कही के भैया नयी पिढी के लएं कछु करउ। सो हमनइंउ उनको कहो पूरो करिवे की ठानि लई। जामइं कित्ती सफलता मिल्ति हइ वू तउ समय बताइ दिहइ। डाॅ प्रखर दीक्षित, फर्रुखाबाद,जिज्जी सुमन पाठक शाहजहांपुर,ददुआ नरेश चन्द्र द्विवेदी फर्रुखाबाद,वारे सब जनें कनउजी के लएं लगातार कामु कर्रए हइं। अब जजौ हालति बनी बाइ संभारिबो पाठक,विद्वानन,अउर नयी पिढी को कामु हइ के जाए कइसेऊं आगे बढावउ, जासइ कनउजी की बगिया ऊ हरी- भरी रहइ। आसा ही नाइं बलकि विश्वास हइ के सब विद्वानन,पाठकन,शोधार्थिअन कउं जौ छोटो सो प्रयास अच्छो लगिहइ,जाइ हम सब “गिलहरिया को प्रयास ” कहइं तु कछु घाटि नाइं हइ।

डा बीरेंद्र कुमार चंद्रसखी

प्रमुख लेख

पडुकिया कनउजी भाखा/ बोली की तिमाही पाती हइ,जाको विचार जासइ आओ के भारत देश मइं सब भाखा/ बोलिन की कोई न कोई पाती जरूर हइ पर कनउजी भाखा की कोई पाती ,कितबिया नाइं हइ , बहिनी अपूर्वा अवस्थी जी नइं हमकउं जू सुझाओ कै भइया कनउजी की एकु पाती/ कितबिया बज्जरूई हुइवो चहिएं। उनको आदेश तु मानिवो हमाओ फज्जु हतो सो हमनइं कही कै जिज्जी अबइ जा कितबिया/ पाती आन लाइन परकासित करिहइं,सो हमनइं जाको लग्गा लगाइ दओ,अउर जा पाती जा सरूप मइं आइ कै सबरे लोग- बाग पढइं अउर दूसन्न कउं पढवइं, अइसइं लोग जान जइहइं कै कनउजी हमाई अपईं कन्नौज के गट्टा की तरिआं मिठास भी री,अउर कन्नौज के अतर की सुगंध बारी भाखा हइ। कनउजी तिमाही पाती के उद्देश्य:- पडुकिया के आन लाइन परकासित करिवे के कछु उद्देश्य जरूर धिआन मइं धरे गए,जातै नयी पिढी कउं सुविधा होइ अउर वौ जान सकइ कै कनउजी भाखा अपईं भागा हइ। १- नई पिढी कनउजी सुनइ/ बोलइ अउर सीखइ जासउं उनकउं सुआभिमान की अनुभूति होइ। २- कनउजी,जनजीवन कउं जा पाती के जरिआ सइ देस विदेस मइं पहुंचाइवो। ३ -कनउजी लोक संस्कृति कउं पाठकन तकि साहित्य रूप मां पहुंचाइवो। ४-कनउजी लोक गीत,लोक-नाटक,लोक गाथा,लोक-कथा,अउर लोक- सुभाषित जइसी लोक -विधान कउं नयी पिढी तकि पहुंचाइवो। ५-नयी शिक्षा नीति२०२० के अनुसार शिक्षा के ऊंचे संस्थानन मइं शिक्षा नीति के बिन्दु संख्या २२.१ संग लइके २२.८तकि लागू करवाइवो। जाके संगइ बिन्दु संख्या ४.११ के मुताबिक कनउजी बच्चन कउं कनउजी मइं पढ़ाई शुरू करवाइवो। आगामी योजनाएं:-कनउजी लोगन अउर दुसरे लोगन के लएं आगामी योजनन के लएं नीचे लिखे बिन्दुनन पइ विचार करो जइहइ। १-जादां सइ जादां लोगन कउं जोरिकें उनके संगइ कनउजी पलेटफारम तइआर करिवो। २- जिला- जिला मइं कनउजी कवि- गोष्ठी,कवि- सम्मेलन करवाइवो। ३- कनउजी लोक- गाथा,लोक-कथा,लोक- नाटक,लोकगीतन,को परदर्शन करवाइवो। ४- इस्कूल,मुदस्सा, महाविद्यालय विश्व विद्यालय के पढिवेवान्न कउं एकु अइसो पलेटफारम दैवे की कोसिस करी जइहइ जासइ वे कनउजी भाखा मइं बोलिवो ,गइवो,पढिवो सीखि सकइं। ५- कनउजी लोक साहित्य,कनउजी साहित्य परकासित करवइवो,जासइ नयी पिढी कउं सहूलियत पढिवे- लिखवे मइं रहइ। अइसे सब लोगन कउं,कनउजी सइ जोरिकें कामु करो जइहइ जासइ कनउजी की दसा- दिसा चमकि कें सबन्न कउं चमकाइ सकइ। सम्पादक मण्डल:- प्रधान सम्पादक:- डाॅ बीरेंद्र कुमार “चन्द्रसखी ” सह- सम्पादक:- डाॅ अपूर्वा “अवस्थी” परामर्श मंडल:- १- श्रीमती सुमन “पाठक ” २- डाॅ प्रखर दीक्षित ३-श्री नरेश द्विवेदी “शलभ”

संक्षिप्त पाठ

बतकही – लोक कथा, लोक गाथा। लोरिकाइन लोरियाँ ,बालगीत। कवितावली कनउजी आधुनिक कविताएँ। गीतावली :- कनउजी विभिन्न प्रकार के लोकगीत। साँगीत नौटंकी,नकटौरा,बाल नाट्य,आदि। इन्द्रधनुष अन्य प्रस्फुटित लोक विधाएं।

बतकही

कल्लि संजा कों बहुत जोर को तुसारु पर्रओ तो । दौआ नै एक झवैया वुलरो निविया के नीचैं सुलगाओ । थोरी देर मै मुहल्ला के चारि पॉच लोग आइ कै जमि गए । दौआ तै कही – दौआ आजु एक कहानिया कहौ । दौआ बोले तो सबजने ध्यान तै सुनो बीच बीच मै हूँकरा देत रहिऔ । सबने कही भला दौआ । अब दौआ ने कहानियाँ कहिवो शुरू करो – – – एकु राजा हते उन्नै अपओं लौड़ा विद्या सिखन कौं एक नौआ के संग वारा वस्स के लाँय गुरुकुल मै पठै दओ । इसकूल मैं जो पट्टी पै लिखाओ जाय नौआ पूरी पट्टी पढ़िकै तव विगारै । ऐसैं जित्तीं विद्या राजा के लरिका नैं सिखीं वे सब नौआ नै भी सिखि लई । बारा वस्स वादि जव पढ़िकै राजाको लड़िका धरै चलदओ तौ नौआ ने पूँछी लला तुमने इत्ते साल का पढ़ो हमउँ बताय देउ । राजा को लरिका बोलो हम नै इत्ते सात मैं अपने पिरान छोड़िं दुसरे की देह मैं घुसि कें वाय जिन्दा करिवो सिखि लओ । नौआ बोलो मरो भओ कैसे ऊँ नाई जिऐ । राजा को लरिका बोलो आउ तुम्हें दिखावैं । वानै एक मरे परे सुआ मैं अपने पिरान डाद्दए । इत्तेई मै नौआ नै अपने पिरान छोंडे औ राजा के लारिका की देह में घुसि गओ । ताके वादि वा सुआ कौं मरिवे कौ दौरो । सुआ विचारो उड़िकैं दूरि चलो गओ । अब आगे की कहानियाँ सुनौ – – राजा को लौंड़ा जव अपएँ घरै पहुंचो तौ राजा ने वाय राजुपाटु सौंपि कें जंगल को रत्ता पकरी । अव नए राजा (नौआ ) ने अपएँ राज्य के सिगरे तोता मरवान को आडरु हैदओ । एक बहेलिया ने जाल में फँसे तोता मारे तौ उनमै एकु तोता बोलो भैया तुम हमइ न मारौ । तुम हमैं राजा की रानी के ढिंगाँ पहुँचाय देउ । तुम्हैं मुह मागी इनाम दिव्वैएँ । तोता की बात मानिकैं वा बहेलिया ने धोविनि बनिकैं डुकाय कैं वौ तोता रानी के ढिगाँ पहुंचाय दओ । रानी तै तोता ने सारो किस्सा कहो । जा सुनिकैं रानी ने नए राजा तै कही तुम कहा पढ़ि आए कछू बताओई नाई । अगिले दिन नए राजा ने दरवार मैं सबै बुलाओ । और एकु बुकरा की गद्दनि कटवाई और वा बुकरा मैं अपने पिरान डाद्दए । तोता ने अपने पिरान तुत्तै छोड़े औ वा राजा की मट्टी में घुसिगओ । अव राजा को लड़िका राजा हुइ गओ । तव राजा नै पूरो किस्सा अपनी पज्जा को सुनाओ । सवने उठिकै वा बुकरा के मूँड में पाँच पाँच जूता मारे । कहानियाँ खतम । अब घरै जाउ । राति बहुत भई सबेरै नींद नाई खुलिए। – नरेश द्विवेदी शलभ फर्रुखाबाद यूपी बाल कहानी. “शिक्षा मैंय खेल को महत्तु” रंजन मास्ट्टर साब इस्कूल के नोके हेड मास्ट्टर हते। बे सदीब अपयें छात्रन कौं शिक्षा के संग-संग खेलन को महत्तऊ समझात रात्‌त हैंइ। एक दिना, उन्नै अपईं कक्षा मैय खेल के महत्तु पै छात्रन के बीच चरचा आयोजित करी । अंजली शिक्षिका ने कही, ” बच्चों खेल केवल मनोरंजन को साधन नाय हैइ, बरन जौहु हमाय शारीरिक औउर मानसिक विकास के लैंऊं भी बहुतै जरुरी हैइ।” भरोसे चच्चा, जो बाई इस्कूल मैय चपरासी हते, नै कही,” हाँ जी रंजन साब खेल मैंय बालकन कौं शारीरिक तंदुरस्ती मिलत हैई। औउर बे अपयैं जीवन मैय अगारुँ बढ़न के लैंय तैयार हुइआत हैइ।” खेल प्रभारी शालिनी नै अपईं बात जोरी, “सही कही भरासे चच्चा नै, खेल बहुतै महत्वपूरण हिस्सा है। हमैं बच्चन कौं खेल के लैंय प्रोत्साहित करिबो चहियें।” कंचन, आद्धिक, तुषार, शैली औउर अवि सभई बच्चा खेल के महत्व की बताई बातैं समझत हते। उन सबने तय करो कि बे अपयें स्कूल मैंय खेल कौं अगारुँ बढ़ान को काम करियैं। आगे रंजन सर ने कही, ” बच्चौं, खेल केवल एक गतिविधि नाय हैइ, वरन जा आपके जीवन को एक अहम भाग हैई। हमें जाय गंभीरता से लीबो चहियैं। संगई जाको आनंद लीबो चहिये। अंजली शिक्षिका नै बच्चन को समझाई, बच्चों खेल सैं आपको शारीरिक और मानसिक विकास से तंदुरुस्ती मिल्त हैइ, ओउर आप सब जीवन मैय आगारुँ बढ़न को तैयार होत हैंई।” आद्विक नै जिग्यासा बतायी, मेम हमाओ मानसिक विकास कैइसें हुयहै ?” शालिनी ने बतायी, “बेटा, खेल सैं बच्चन कौं टीमवर्क माने समूह मैंय काम करिबो, नेतृत्व औउर प्रतिस्पर्धा की भावना सीखन कौं मिल्त हैइ।” सिंह साहब ने अपयें विचार धरे,” जी हाँ, आपके गुरुजनन नै सही कही,खेल शिक्षा को बहुतई अहम भाग हैइ। हमैं बच्चन के लैंय खेल प्रतियोगिता इस्कूल मैय करेइबो चहियैं। जेई बच्चा देश को भविष्य हैई। कंचन आद्विक, तुषार शैली के संगई उपस्थित बच्चन नै तारी बजाय कैं अपईं प्रसन्नता प्रदर्शित करी। उन्नै तय करो कि बे इस्कूल मैंय खेल कौं बढ़ावा देन के लैंय काम करियैं। शिक्षा को महत्तु शिक्षा के संग-संग मैं खेलऊ कौ बडो महत्तु हैइ।खेल सैं हमैं शारीरिक औउर मानसिक तंदुरुस्ती मिर्च हैई। हम अपयैं जीवन मैंय अगारुँ बढ़न के लैंय तैयार होत हैंइ। नैतिक मूल्य – *खेल को महत्तु * शिक्षा को महत्तु * शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य * समूह काम, नेतृत्व औऊर स्परधा की भाउना । * भैयाचारे की भाउना पैदा होत हैई। * * * * * * -प्रखर दीक्षित चाकर हम उनके एक साहूकार के निरे गोरू हरा हते, बाए बड़ो शौक हतो जानवरन को पलिबे को, सो बौ का करै कि जब हिं उसै व्यापार में कछू लाभ होय तौ बौ एक जानवर खरीद ले. कबहूँ घोड़ा, कबहूँ हाथी, ग ईया, भैंसिया, ऊंट ऐसेई होत करत उइके तीर निरे जानवर हुई गए. अब जा समस्या भयी कि इत्ते जानवरन को कैसे इंतजाम होय कौन देखभाल करै, खबाबै पियाबै चरावै सो कौन करै. तौ उई साहूकार ने गाँव में कही कि कोई आदमी हमारे जानवरन की देखभाल करै तो, हम उसे तनख्वाह दी हैं. एक दुई लोग आए लेकिन दुई चार दिन में भाजि गए. अच्छा बाकी मेहरिया जो हती बा बड़ा लरै झगिरै कहै, तुमने जे इत्ते गोरू हरा पालि लये अब इन्हें निरो भूसा चारा खबाबौ, कित्तो धन खरच हो त है. जौ तुम्हारो सौक बड़ो महंगो है. साहूकार कहन लगो अरे तुम बेकार की चिंता करती हो सब पलि जैंहे. ऐसेई होत कत्त दिन बीतत रहे, एकु लरिका गाँव में रहत हतो सो बौ थोरो सिर्री हतो, अपयें में मगन रहै ना ज्यादा बोले ना बतिआए. तौ एक दिन साहूकार के सबै काम वाले चले गए कोई नाहीं हतो जो उनके जानवरन की खुद्दरू करै. अब बौ साहूकार मार केरे परा सान , जौ सिर्री लरिका आई ग ओ तौ साहूकार उइके निहोरे करन लगो, ओ भैया, ओ भैया नेकु आजु तुम हमाए गोरु हरा चराय देउ हम तुम्है पैसा दी हैं खाना दी है ओ भैया नेकु तुम आज हमायी मदत कर देऊ तौ लरिका साहूकार की बात मानि ग ओ और सबै जानवर लैके चलो गौ जंगल के घांय अब थोरी देर बाद उसै भूख लगी तौ बौ लरिका घरै आओ खाना पीना खाओ और परि केसोई ग ओ. उसे सुध नाहीं रही कि गोरू हरा तौ हुअंन चरि रहे हैं. घर में सब जनतहि हते कि जौ कछू काम धाम तौ करत नाहीं तौ किसे पता कि बौ जानवरन को ढील आओ है. जब संझा भयी तौ उसे कछु याद आओ तौ बौ जंगल घांय ग ओ तौले बे सब जानवर कहूँ चले गये. अब बा सिर्री लरिका ने का करौ कि एक बड़ो सो पत्ता को दोना बनाओ उइमें सबै जानवर जो गोबर या लीद करी हती धरि लयी. और ऊपर से एक पत्ता ढाकि द ओ फिर एक आदमी जो साहूकार के घरै जाइ रहो हतो उसे बौ दोना पकराई के बोलो, कहि दीजो जाइ उनते हम चाकर हैं जिनके हिराई गयीं हैं उई जो हगती रहैं ई – डा अपूर्वा अवस्थी

लोकगीत

डाॅ बीरेन्द्र कुमार चन्द्रसखी कनउजी के सब पुजारी भए,पूजत हइं मन मइं प्रन धारइं। हे! पनमेसुर विनती सुनो, अइसो होइ सबु बिपति उबारइं। फूलमती मइआ सुनिओ, बिरहम्म सरूप को नाम उचारइं। चन्द्रसखी सब नीके रहइं, सब निरोग रहइं पिरभु अबरी टारइं। गांउ मइं लरिका ऊधम मचाउत हइं, खइवे कउं मांगि रए, भाजि रए डगर- डगर।, भाजि रए डगर-डगर सूझइ नांइ राह उनइं,बब्बा गरियाइ रए,लरिका करइं अगर- मगर। लरिका करइं अगर- मगर, घर घर छुछिआइ रए,टिसुआ के ब्याउ के लएं देखि रए टुकर-टुकर। देखि रए टुकुर-टुकुर दद्दू नइं दुइ रुपिया दए, चन्द्रसखी भाजि दए, पेटु करइ फफर- फफर। सबन्न कउं सबेरे की जय जय सियाराम। झुनियां की बहिन सकारे गयी, हुआं फेरइ मठा छुनुआँ महतारी। लोटा पिछेलां दुकाइ रही,अम्मा समुझी आई कोई नारी। रई चलइ घररर,मररर,मांखन की लौंदि दिखइ देखौ न्यारी। मटफिन्ना,दुधांडी,बरोसी सबई, झुनियां नइं कही एक बात अगारी। अम्मा मठा निकु दीजो हमइं,सतुआ खइहइं मेरे राम मुरारी। चन्द्रसखी तब पूछि रही ,लोटा लावहु बिटिया मेरी प्यारी। हाय! ददा तब उसांसी लयीं,अम्मा कह रयी तू हइ मतवारी। लाई न लोटा कटोरा कछू, लइ काए मइं जइहउ रतनारी। जो जइसो ताइ तइसो पन्नाम। प्रखर दीक्षित (कनौजी रसरंग-कहोनई) ताल की माटी ता लै ढ़रकै मूर समान सीख ददुआ की, कर बहियां बल अपईं कीन। पराये घये टेढो़ मोंह होय, अकिलैं भली बजेगी बीन॥ फुली पराई सबई टटोवै, अपुन ओ टिटरो किन्हैं दिखाय। ऐसे अइसे हड़चट्टा हैई, डुबकी मार मछरियां खांय॥ तीन अधेली रुपया मैंय करि, घिसी चौवन्नी दे चलाय। हात मैंय जूता पांव बिमाई, धड़। को ड्योढ़ा खूब कमांय॥ होरी भोर हनाय लम्बरी,चीलर लित्ता, देही माहकै। जुरीं सम्पदा ठलुआ खहिहैं,ताल की माटी ता लै ढ़रकै॥ (कनउजी रसरंग-कहनौति)-४ बिगरी सबकी राम बनांय कछु लिखिबे को काम हतो सो, तामैं जियरा दओ लगाय। सूर बताई मन कँह बीसी, तासैं सुत्तां नाय हुय पाय॥ दिन मैंय घामो संजा जाडो़, तापै मसे मूड भन्नांय। धुआं करौ चहै कुप्पी बारौ, चांयें फिरि घासलेट महकांय॥ ओढ़ि पिछौरा अगियाने ढ़िंग, चच्चा बैइठे गोड़ पसार। तभईं लौंडा लै सिरकिटिया, दाहकत आगी देय बिगार॥ टिड़ई टिन्नी मिडई भरोसे, जानै आलुन को अहवाल। औचक भन्न परी ददुआ जू, अबकी दद्दा निरां हलाल़॥ गई साल को भाव गिरे तो,बीज खाद की मारामार। मूड पसेरी नाऊ मांगै , मांगत धोबी भंग कंहार॥ धनकुन लरिका भये को मांगति, नेग चुरिन को अभऊँ उधार। लैइ गये गड्डे दऊआ अपनो, घेर लिपन को बा इतवार॥ राम गुपाली अरा संबारो , गलुआ हस्स खुरपिया धार। बाई भन्न मैंय कटो पनारो, आंगन पनियां कींच अपार॥ बिगरी राम बनैहैं सबकी, राम भरोसे राम सहाय। सरन तुमायी हे!परमेसुर, बिगरी दाता देउ बनाय॥ डा अपूर्वा अवस्थी हाय जारौ तोहरे कारन बहुत अब ठंडाई गये हैं हाथ उंगरिया लाल हुई गयीं,जिऊ तौ अब बिल्लाई गौ है घाम आजि कल निकसत नाही कपरा लत्ता सूखत नाही हर हर चलै ठंडी बयरिया घर मा जियु उकताई गौ है ॥ नरेश द्विवेदी शलभ मोटी धोविनि मेरे गाउँ। वाको हतो जलेवी नाउँ ॥ हरि महिना कपड़ा लै जाय । रेहु निरो ऊसर तै लाय । सौदै कपड़ा तालै जाय । फींचति पटा संग जौ गाय । छियोराम की करे अवाज । कपड़ा फींचत आय न लाज । जब तै छोड़ो उन्नै गाँव तव तै मिलो कहूँ ना ठाँउँ ॥ दानै दाने कौ मोहताज मागै भीक न आवै लाज । राति घरी वीती दुइ अवहीं दौऐ खटपट परी सुनाय । हमैं लगै चोट्टा घुसि आए अँहड़ो पाछैं दओ लगाय । लठिया मढ़ी गुला कोने तै सो दौआ नै लई उठाय । धल्ललकारो जब दौआने सिट्टी पिट्टी दई भुलाय । धरो लट्ठु कमसीति पिछारूँ बेंड़ो धत्ती दओ पसारि हिम्मति तैनै कैसे कल्लई सारे दिऐं जान तै मारि ॥ हाहा करै घरै पाइन पै पटकै मूंडु कहै चिल्लाय दद्दै चोरी कभौं न करिऐं अबकी खता माँफु हुइ जाय ॥ तऊँ नाँय मानी दौआ ने मोटी रस्सी लई उठाय । बाँधि कमरि रस्सी तै वाकी पूरे गाँउँ घुमाओ जाय ॥ ऐसी सजा मिलै जौ कर्री तौ आदति चोरी की जाय करैं रपट रिसवति दै छुटै मूँछन ताउ देय घर आय ॥ आवतु जातु न जानि परै दिनु , सूज्ज तजी गरमी भए ठंडे । हाँत कपोय भए बूढ़िन से सूखत नाहिं पथौरे पै कण्डे । बद्द न ठंड तैआँगूँ वढैं चाँहिं मारौ पीठि मैं कितनेउ डण्डे । देह मै आय नहीं गरमी भलैं खाइ लें दिन में दद्स अण्डे । गोवरु चाँदि छटा भरि कैं चली .पाँउँ महाउर है अति गाड़ो । चुप्पै किवार के पीछें डुको ताको देउर ताकि रहौ ताहि ठाड़ो । कामु न नेकौ करै नठिया आउ , देउँ सजा तोय लै कैं खराड़ो । काहे कौं भौजी रिसाइ रही का चाहतिं हमते कन्न कौं राड़ो ।

श्रम गीत

दद्दा कइसे लिखइं स्रमगीत दिखति नांय स्रम भारी कुंअटा नांय तलैया नाहीं गगरा दये भुलाय भलर भलर टोंटी से निकरो घरकेन्न नीर बहाय आलसता हइ धारी… सिलबटना अब दीखति नाहीं मिकसी रहि घन्नाय होटल ते भाजी मंगवाय लयी लयी पाव से खाय रसुइया बिसारि डारी… चकिया, चूल्हे ,दन्नो ,फटकनो गोबर ,गोरू नायँ दही ,मटुकिया,अउर रई सब हमने दई भुलाय वियाधि लगैं अब भारी… दद्दा कइसे लिखैं श्रमगीत दिखति नायँ श्रम भारी सुमन पाठक श्रम गीत कनौउजी सिंघाड़ा कैसे तोडूं हाय मोरी दैया ताल में जाऊं तलैया में जाऊं सनि जाय मोरी धोतिया,हाय मोरी दैया सिंघाड़ा के कांटे बड़े नुकीले कटि जाय अंगुरिया हाय मोरी दैया ताल किनारे बैठी बंदरिया सिंघाड़े मोरे छीने हाय मोरी दैया जारे के कारन कांपै हमारो जिया हमें ओढ़ाई देऊं रजैया हाय मोरी दैया डा अपूर्वा अवस्थी (कन्नौजी रसरंग) पारम्परिक लोकगीत चकिया गरड़़-गरड़ घर्राय चकिया गरड़-गरड़ घर्राय, पिसनो कैसें पीसैं हाय। दैया मका न पीसी जाय…… भारी पाट हात भये डट्टा, पकरत डढ़ा पिरावैं हात। अपने बबुल की रई लड़ै़ती,सैंया सुनै नाय कोऊ बात ॥ लगत भुरारें उइरैं चकिया, मन की दैया कि नै सुनाय॥ दैया मका न पीसी जाय…… चून पसेरी पौहंन दाना, हेंउत की रात कटाकट दांती। टपटप देही चुये पसीना , ननदो देखि न फूली समांती॥ रहि-रहि सासु अंगार उगलती, नय चकिया हम पै चलै चलाय॥ दैया मका न पीसी जाय…… सूज्ज चढ़े लौं बोलैं ननदी, सासुल देतीं ताने। अपुन आ पिसती गेऊँ बाजरा, हमकौं मका के दाने॥ काह लिखी मेरे भाग बिधाता, आंखिन आंसू मधुर ढ़ार जाय॥ दैया मका न पीसी जाय…… प्रखर दीक्षित फरक्काबाद

सोहर

सोहर शब्द अपने क्षेत्र में सोंरि,सौंरि का शिष्ट रूप है,प्रसव होने के बाद या इससे पूर्व आसन्न समय में या बच्चे के ज तयन्म पर गाए जाते हैं। बच्चे के जन्म संस्कार पर जनने गाए जाते हैं।यह शब्द जनना= पैदा होना,जन्म लेने से निसृत है।जन्म के बाद गाँव में पूर्व समय में कनउजी क्षेत्र में धानुक की पत्नी ( धनकुनें) दाई (धाय) का कार्य करतीं थीं। अब तो सरकारी योजनाओं ने साफ- सफाई और सुरक्षित प्रसवों के लिए चिकित्सालयों में भेजना आवश्यक कर दिया। यह सामाजिक रूप से आवश्यक भी हो गया,ताकि नयी पीढी स्वस्थ हो। इन लोकगीतों में प्रसवा (जापे की महिला) की सासु,ननद, जेठानी,धनकुन के साथ नेग मांगने पर हुई नोंक- झोंक और प्रसवा की असहनीय पीडा का वर्णन मिलता है। औरतें छठी के दिन खूब नाचतीं – गातीं हैं।बालक के होने पर खुशियां अपार होतीं हैं इतनी लडकी के होने पर नहीं।अब सब गायब कम से नयी पीढी में गायन तो स्थानान्तरित हो। जनना( सोहर) :- ललन भये रातें हाँ नीको लागइ। सासू जो आवइं चरुआ धरावइं, चरुआ धराई नेगु हँसुली को मांगइं। जिठनी जो आवइं पिपरें पिसावइं। पिपरें पिसाई नेगु कंगनन को मांगइं। ननदो आवइं ललनइं कजरा/ ढटौना लगावइं। कजरा लगाई नेगु हरवा को मांगइं। दिवरा जो आवइं तिरवा / तीर जो मारइं। तीर चलाई नेगु अंगूठी को मंगाइं।ललन भए। डाॅ बी के चन्द्रसखी दै देओ भाभी रानी अपने कंगना। सोहर कंगना -कंगना मत कर ननदी , चढ़ने न दौंगी अपने अंगना दै देओ भाभी रानी अपने… कंगना-कंगना मत कर ननदी , छूने न दौंगी अपुनो ललना दै देओ भाभी रानी अपने… अंगना नाय तुम्हारे बबुल को, हमरे बबुल को है अंगना दै देओ भाभी रानी अपने… ललना नाहीं है तुम्हरे बबुल को, हमरे बरन को है ललना दै देओ भाभी रानी अपने… ललना ललना मतकर ननदी, छूने न दियूंगी अपुनो पलना दै देओ भाभी रानी अपने… पलना नायें भाभी तुम्हरे सजन को, हमरे सजन लाये पलना दै देओ भाभी रानी अपने… भीतर सैं फेंके आंगन खन्नाने ,लै जाओ ननदो हाय दैया कंगना दै देओ भाभी रानी अपने… जुग-जुग जियें भौजिया-भैया, जुग-जुग जिये हमारो ललना दै देओ भाभी रानी अपने… रचना – वंदना रश्मि तिवारी, इटावा सोहर घर बाजैं बधाए सुनौ ना, ललन भये भौजी के अंगना॥ ननद रानी मांगैं हाय दैया कंगना… जो देवैं सो ले लै ओ ननदी भैया तुम गये नाय द़ई नगदी मन जाओ रानी करौ ठनगन ना॥ ननद रानी मांगैं हाय दैया कंगना… मांगैं हरवा लांहगा चुनरी बाजूबंद पैंजनी तिलरी दींहैं धुतिया छोड़ हम कछु ना॥ ननद रानी मांगैं हाय दैया कंगना… काजर लगाई मैंय बेला लीहैं भरि भरि अचरा आसिस दीहैं मेरो जुग जुग जिये भौजी ललना॥ ननद रानी मांगैं हाय दैया कंगना… प्रखर दीक्षित अंगना में भयी धूमधामी,भले राजा तुमने ना जानी ससुरा हमारे ने हाथी लुटाए ऐ महवत रहि गये निसानी भले राजा तुमने ना जानी अंगना में भयी धूमधामी भले राजा तुमने ना जानी जेठा हमारे ने घोड़े लुटाए ऐ चाबुक रहि गये निसानी भले राजा तुमने ना जानी देवरा हमारे ने रंडी नचाई ऐ घुंघुरू रहि गये निसानी भले राजा तुमने ना जानी डा अपूर्वा अवस्थी Volume 1 • Issue 1 • Jan–Mar 2026
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