बतकही
कल्लि संजा कों बहुत जोर को तुसारु पर्रओ तो । दौआ नै एक झवैया वुलरो निविया के नीचैं सुलगाओ । थोरी देर मै मुहल्ला के चारि पॉच लोग आइ कै जमि गए । दौआ तै कही – दौआ आजु एक कहानिया कहौ । दौआ बोले तो सबजने ध्यान तै सुनो बीच बीच मै हूँकरा देत रहिऔ ।
सबने कही भला दौआ ।
अब दौआ ने कहानियाँ कहिवो शुरू करो – – –
एकु राजा हते उन्नै अपओं लौड़ा विद्या सिखन कौं एक नौआ के संग वारा वस्स के लाँय गुरुकुल मै पठै दओ ।
इसकूल मैं जो पट्टी पै लिखाओ जाय नौआ पूरी पट्टी पढ़िकै तव विगारै । ऐसैं जित्तीं विद्या राजा के लरिका नैं सिखीं वे सब नौआ नै भी सिखि लई ।
बारा वस्स वादि जव पढ़िकै राजाको लड़िका धरै चलदओ तौ नौआ ने पूँछी लला तुमने इत्ते साल का पढ़ो हमउँ बताय देउ ।
राजा को लरिका बोलो हम नै इत्ते सात मैं अपने पिरान छोड़िं दुसरे की देह मैं घुसि कें वाय जिन्दा करिवो सिखि लओ ।
नौआ बोलो मरो भओ कैसे ऊँ नाई जिऐ ।
राजा को लरिका बोलो आउ तुम्हें दिखावैं ।
वानै एक मरे परे सुआ मैं अपने पिरान डाद्दए ।
इत्तेई मै नौआ नै अपने पिरान छोंडे औ राजा के लारिका की देह में घुसि गओ । ताके वादि वा सुआ कौं मरिवे कौ दौरो । सुआ विचारो उड़िकैं दूरि चलो गओ ।
अब आगे की कहानियाँ सुनौ – –
राजा को लौंड़ा जव अपएँ घरै पहुंचो तौ राजा ने वाय राजुपाटु सौंपि कें जंगल को रत्ता पकरी ।
अव नए राजा (नौआ ) ने अपएँ राज्य के सिगरे तोता मरवान को आडरु हैदओ । एक बहेलिया ने जाल में फँसे तोता मारे तौ उनमै एकु तोता बोलो भैया तुम हमइ न मारौ । तुम हमैं राजा की रानी के ढिंगाँ पहुँचाय देउ । तुम्हैं मुह मागी इनाम दिव्वैएँ ।
तोता की बात मानिकैं वा बहेलिया ने धोविनि बनिकैं डुकाय कैं वौ तोता रानी के ढिगाँ पहुंचाय दओ ।
रानी तै तोता ने सारो किस्सा कहो । जा सुनिकैं रानी ने नए राजा तै कही तुम कहा पढ़ि आए कछू बताओई नाई ।
अगिले दिन नए राजा ने दरवार मैं सबै बुलाओ ।
और एकु बुकरा की गद्दनि कटवाई और वा बुकरा मैं अपने पिरान डाद्दए । तोता ने अपने पिरान तुत्तै छोड़े औ वा राजा की मट्टी में घुसिगओ । अव राजा को लड़िका राजा हुइ गओ ।
तव राजा नै पूरो किस्सा अपनी पज्जा को सुनाओ । सवने उठिकै वा बुकरा के मूँड में पाँच पाँच जूता मारे ।
कहानियाँ खतम । अब घरै जाउ । राति बहुत भई सबेरै नींद नाई खुलिए।
– नरेश द्विवेदी शलभ फर्रुखाबाद यूपी
बाल कहानी.
“शिक्षा मैंय खेल को महत्तु”
रंजन मास्ट्टर साब इस्कूल के नोके हेड मास्ट्टर हते। बे सदीब अपयें छात्रन कौं शिक्षा के संग-संग खेलन को महत्तऊ समझात रात्त हैंइ। एक दिना, उन्नै अपईं कक्षा मैय खेल के महत्तु पै छात्रन के बीच चरचा आयोजित करी ।
अंजली शिक्षिका ने कही, ” बच्चों खेल केवल मनोरंजन को साधन नाय हैइ, बरन जौहु हमाय शारीरिक औउर मानसिक विकास के लैंऊं भी बहुतै जरुरी हैइ।”
भरोसे चच्चा, जो बाई इस्कूल मैय चपरासी हते, नै कही,” हाँ जी रंजन साब खेल मैंय बालकन कौं शारीरिक तंदुरस्ती मिलत हैई। औउर बे अपयैं जीवन मैय अगारुँ बढ़न के लैंय तैयार हुइआत हैइ।”
खेल प्रभारी शालिनी नै अपईं बात जोरी, “सही कही भरासे चच्चा नै, खेल बहुतै महत्वपूरण हिस्सा है। हमैं बच्चन कौं खेल के लैंय प्रोत्साहित करिबो चहियें।”
कंचन, आद्धिक, तुषार, शैली औउर अवि सभई बच्चा खेल के महत्व की बताई बातैं समझत हते। उन सबने तय करो कि बे अपयें स्कूल मैंय खेल कौं अगारुँ बढ़ान को काम करियैं।
आगे रंजन सर ने कही, ” बच्चौं, खेल केवल एक गतिविधि नाय हैइ, वरन जा आपके जीवन को एक अहम भाग हैई। हमें जाय गंभीरता से लीबो चहियैं। संगई जाको आनंद लीबो चहिये।
अंजली शिक्षिका नै बच्चन को समझाई, बच्चों खेल सैं आपको शारीरिक और मानसिक विकास से तंदुरुस्ती मिल्त हैइ, ओउर आप सब जीवन मैय आगारुँ बढ़न को तैयार होत हैंई।”
आद्विक नै जिग्यासा बतायी, मेम हमाओ मानसिक विकास कैइसें हुयहै ?”
शालिनी ने बतायी, “बेटा, खेल सैं बच्चन कौं टीमवर्क माने समूह मैंय काम करिबो, नेतृत्व औउर प्रतिस्पर्धा की भावना सीखन कौं मिल्त हैइ।”
सिंह साहब ने अपयें विचार धरे,” जी हाँ, आपके गुरुजनन नै सही कही,खेल शिक्षा को बहुतई अहम भाग हैइ। हमैं बच्चन के लैंय खेल प्रतियोगिता इस्कूल मैय करेइबो चहियैं। जेई बच्चा देश को भविष्य हैई।
कंचन आद्विक, तुषार शैली के संगई उपस्थित बच्चन नै तारी बजाय कैं अपईं प्रसन्नता प्रदर्शित करी। उन्नै तय करो कि बे इस्कूल मैंय खेल कौं बढ़ावा देन के लैंय काम करियैं।
शिक्षा को महत्तु
शिक्षा के संग-संग मैं खेलऊ कौ बडो महत्तु हैइ।खेल सैं हमैं शारीरिक औउर मानसिक तंदुरुस्ती मिर्च हैई। हम अपयैं जीवन मैंय अगारुँ बढ़न के लैंय तैयार होत हैंइ।
नैतिक मूल्य –
*खेल को महत्तु
* शिक्षा को महत्तु
* शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य
* समूह काम, नेतृत्व औऊर स्परधा की भाउना ।
* भैयाचारे की भाउना पैदा होत हैई।
* * * * * *
-प्रखर दीक्षित
चाकर हम उनके
एक साहूकार के निरे गोरू हरा हते, बाए बड़ो शौक हतो जानवरन को पलिबे को, सो बौ का करै कि जब हिं उसै व्यापार में कछू लाभ होय तौ बौ एक जानवर खरीद ले. कबहूँ घोड़ा, कबहूँ हाथी, ग ईया, भैंसिया, ऊंट
ऐसेई होत करत उइके तीर निरे जानवर हुई गए. अब जा समस्या भयी कि इत्ते जानवरन को कैसे इंतजाम होय कौन देखभाल करै, खबाबै पियाबै चरावै सो कौन करै.
तौ उई साहूकार ने गाँव में कही कि कोई आदमी हमारे जानवरन की देखभाल करै तो, हम उसे तनख्वाह दी हैं. एक दुई लोग आए लेकिन दुई चार दिन में भाजि गए.
अच्छा बाकी मेहरिया जो हती बा बड़ा लरै झगिरै कहै, तुमने जे इत्ते गोरू हरा पालि लये अब इन्हें निरो भूसा चारा खबाबौ, कित्तो धन खरच हो त है. जौ तुम्हारो सौक बड़ो महंगो है.
साहूकार कहन लगो अरे तुम बेकार की चिंता करती हो सब पलि जैंहे.
ऐसेई होत कत्त दिन बीतत रहे, एकु लरिका गाँव में रहत हतो सो बौ थोरो सिर्री हतो, अपयें में मगन रहै ना ज्यादा बोले ना बतिआए.
तौ एक दिन साहूकार के सबै काम वाले चले गए कोई नाहीं हतो जो उनके जानवरन की खुद्दरू करै. अब बौ साहूकार मार केरे परा सान , जौ सिर्री लरिका आई ग ओ तौ साहूकार उइके निहोरे करन लगो, ओ भैया, ओ भैया नेकु आजु तुम हमाए गोरु हरा चराय देउ हम तुम्है पैसा दी हैं खाना दी है ओ भैया नेकु तुम आज हमायी मदत कर देऊ तौ लरिका साहूकार की बात मानि ग ओ और सबै जानवर लैके चलो गौ जंगल के घांय
अब थोरी देर बाद उसै भूख लगी तौ बौ लरिका घरै आओ खाना पीना खाओ और परि केसोई ग ओ. उसे सुध नाहीं रही कि गोरू हरा तौ हुअंन चरि रहे हैं.
घर में सब जनतहि हते कि जौ कछू काम धाम तौ करत नाहीं तौ किसे पता कि बौ जानवरन को ढील आओ है.
जब संझा भयी तौ उसे कछु याद आओ तौ बौ जंगल घांय ग ओ तौले बे सब जानवर कहूँ चले गये.
अब बा सिर्री लरिका ने का करौ कि एक बड़ो सो पत्ता को दोना बनाओ उइमें सबै जानवर जो गोबर या लीद करी हती धरि लयी.
और ऊपर से एक पत्ता ढाकि द ओ फिर एक आदमी जो साहूकार के घरै जाइ रहो हतो उसे बौ दोना पकराई के बोलो,
कहि दीजो जाइ उनते
हम चाकर हैं जिनके
हिराई गयीं हैं उई
जो हगती रहैं ई
– डा अपूर्वा अवस्थी
लोकगीत
डाॅ बीरेन्द्र कुमार चन्द्रसखी
कनउजी के सब पुजारी भए,पूजत हइं मन मइं प्रन धारइं।
हे! पनमेसुर विनती सुनो, अइसो होइ सबु बिपति उबारइं।
फूलमती मइआ सुनिओ, बिरहम्म सरूप को नाम उचारइं।
चन्द्रसखी सब नीके रहइं, सब निरोग रहइं पिरभु अबरी टारइं।
गांउ मइं लरिका ऊधम मचाउत हइं, खइवे कउं मांगि रए, भाजि रए डगर- डगर।, भाजि रए डगर-डगर सूझइ नांइ राह उनइं,बब्बा गरियाइ रए,लरिका करइं अगर- मगर। लरिका करइं अगर- मगर, घर घर छुछिआइ रए,टिसुआ के ब्याउ के लएं देखि रए टुकर-टुकर। देखि रए टुकुर-टुकुर दद्दू नइं दुइ रुपिया दए, चन्द्रसखी भाजि दए, पेटु करइ फफर- फफर।
सबन्न कउं सबेरे की जय जय सियाराम।
झुनियां की बहिन सकारे गयी, हुआं फेरइ मठा छुनुआँ महतारी।
लोटा पिछेलां दुकाइ रही,अम्मा समुझी आई कोई नारी।
रई चलइ घररर,मररर,मांखन की लौंदि दिखइ देखौ न्यारी।
मटफिन्ना,दुधांडी,बरोसी सबई, झुनियां नइं कही एक बात अगारी।
अम्मा मठा निकु दीजो हमइं,सतुआ खइहइं मेरे राम मुरारी।
चन्द्रसखी तब पूछि रही ,लोटा लावहु बिटिया मेरी प्यारी।
हाय! ददा तब उसांसी लयीं,अम्मा कह रयी तू हइ मतवारी।
लाई न लोटा कटोरा कछू, लइ काए मइं जइहउ रतनारी।
जो जइसो ताइ तइसो पन्नाम।
प्रखर दीक्षित
(कनौजी रसरंग-कहोनई)
ताल की माटी ता लै ढ़रकै
मूर समान सीख ददुआ की, कर बहियां बल अपईं कीन।
पराये घये टेढो़ मोंह होय, अकिलैं भली बजेगी बीन॥
फुली पराई सबई टटोवै, अपुन ओ टिटरो किन्हैं दिखाय।
ऐसे अइसे हड़चट्टा हैई, डुबकी मार मछरियां खांय॥
तीन अधेली रुपया मैंय करि, घिसी चौवन्नी दे चलाय।
हात मैंय जूता पांव बिमाई, धड़। को ड्योढ़ा खूब कमांय॥
होरी भोर हनाय लम्बरी,चीलर लित्ता, देही माहकै।
जुरीं सम्पदा ठलुआ खहिहैं,ताल की माटी ता लै ढ़रकै॥
(कनउजी रसरंग-कहनौति)-४
बिगरी सबकी राम बनांय
कछु लिखिबे को काम हतो सो, तामैं जियरा दओ लगाय।
सूर बताई मन कँह बीसी, तासैं सुत्तां नाय हुय पाय॥
दिन मैंय घामो संजा जाडो़, तापै मसे मूड भन्नांय।
धुआं करौ चहै कुप्पी बारौ, चांयें फिरि घासलेट महकांय॥
ओढ़ि पिछौरा अगियाने ढ़िंग, चच्चा बैइठे गोड़ पसार।
तभईं लौंडा लै सिरकिटिया, दाहकत आगी देय बिगार॥
टिड़ई टिन्नी मिडई भरोसे, जानै आलुन को अहवाल।
औचक भन्न परी ददुआ जू, अबकी दद्दा निरां हलाल़॥
गई साल को भाव गिरे तो,बीज खाद की मारामार।
मूड पसेरी नाऊ मांगै , मांगत धोबी भंग कंहार॥
धनकुन लरिका भये को मांगति, नेग चुरिन को अभऊँ उधार।
लैइ गये गड्डे दऊआ अपनो, घेर लिपन को बा इतवार॥
राम गुपाली अरा संबारो , गलुआ हस्स खुरपिया धार।
बाई भन्न मैंय कटो पनारो, आंगन पनियां कींच अपार॥
बिगरी राम बनैहैं सबकी, राम भरोसे राम सहाय।
सरन तुमायी हे!परमेसुर, बिगरी दाता देउ बनाय॥
डा अपूर्वा अवस्थी
हाय जारौ तोहरे कारन बहुत अब ठंडाई गये हैं
हाथ उंगरिया लाल हुई गयीं,जिऊ तौ अब बिल्लाई गौ है
घाम आजि कल निकसत नाही कपरा लत्ता सूखत नाही
हर हर चलै ठंडी बयरिया घर मा जियु उकताई गौ है ॥
नरेश द्विवेदी शलभ
मोटी धोविनि मेरे गाउँ।
वाको हतो जलेवी नाउँ ॥
हरि महिना कपड़ा लै जाय ।
रेहु निरो ऊसर तै लाय ।
सौदै कपड़ा तालै जाय ।
फींचति पटा संग जौ गाय ।
छियोराम की करे अवाज ।
कपड़ा फींचत आय न लाज ।
जब तै छोड़ो उन्नै गाँव
तव तै मिलो कहूँ ना ठाँउँ ॥
दानै दाने कौ मोहताज
मागै भीक न आवै लाज ।
राति घरी वीती दुइ अवहीं
दौऐ खटपट परी सुनाय ।
हमैं लगै चोट्टा घुसि आए
अँहड़ो पाछैं दओ लगाय ।
लठिया मढ़ी गुला कोने तै
सो दौआ नै लई उठाय ।
धल्ललकारो जब दौआने
सिट्टी पिट्टी दई भुलाय ।
धरो लट्ठु कमसीति पिछारूँ
बेंड़ो धत्ती दओ पसारि
हिम्मति तैनै कैसे कल्लई
सारे दिऐं जान तै मारि ॥
हाहा करै घरै पाइन पै
पटकै मूंडु कहै चिल्लाय
दद्दै चोरी कभौं न करिऐं
अबकी खता माँफु हुइ जाय ॥
तऊँ नाँय मानी दौआ ने
मोटी रस्सी लई उठाय ।
बाँधि कमरि रस्सी तै वाकी
पूरे गाँउँ घुमाओ जाय ॥
ऐसी सजा मिलै जौ कर्री
तौ आदति चोरी की जाय
करैं रपट रिसवति दै छुटै
मूँछन ताउ देय घर आय ॥
आवतु जातु न जानि परै दिनु ,
सूज्ज तजी गरमी भए ठंडे ।
हाँत कपोय भए बूढ़िन से
सूखत नाहिं पथौरे पै कण्डे ।
बद्द न ठंड तैआँगूँ वढैं चाँहिं
मारौ पीठि मैं कितनेउ डण्डे ।
देह मै आय नहीं गरमी भलैं
खाइ लें दिन में दद्स अण्डे ।
गोवरु चाँदि छटा भरि कैं चली
.पाँउँ महाउर है अति गाड़ो ।
चुप्पै किवार के पीछें डुको ताको
देउर ताकि रहौ ताहि ठाड़ो ।
कामु न नेकौ करै नठिया आउ ,
देउँ सजा तोय लै कैं खराड़ो ।
काहे कौं भौजी रिसाइ रही
का चाहतिं हमते कन्न कौं राड़ो ।
श्रम गीत
दद्दा कइसे लिखइं स्रमगीत
दिखति नांय स्रम भारी
कुंअटा नांय तलैया नाहीं
गगरा दये भुलाय
भलर भलर टोंटी से निकरो
घरकेन्न नीर बहाय
आलसता हइ धारी…
सिलबटना अब दीखति नाहीं
मिकसी रहि घन्नाय
होटल ते भाजी मंगवाय लयी
लयी पाव से खाय
रसुइया बिसारि डारी…
चकिया, चूल्हे ,दन्नो ,फटकनो
गोबर ,गोरू नायँ
दही ,मटुकिया,अउर रई
सब हमने दई भुलाय
वियाधि लगैं अब भारी…
दद्दा कइसे लिखैं श्रमगीत
दिखति नायँ श्रम भारी
सुमन पाठक
श्रम गीत कनौउजी
सिंघाड़ा कैसे तोडूं हाय मोरी दैया
ताल में जाऊं तलैया में जाऊं
सनि जाय मोरी धोतिया,हाय मोरी दैया
सिंघाड़ा के कांटे बड़े नुकीले
कटि जाय अंगुरिया हाय मोरी दैया
ताल किनारे बैठी बंदरिया
सिंघाड़े मोरे छीने हाय मोरी दैया
जारे के कारन कांपै हमारो जिया
हमें ओढ़ाई देऊं रजैया हाय मोरी दैया
डा अपूर्वा अवस्थी
(कन्नौजी रसरंग)
पारम्परिक लोकगीत
चकिया गरड़़-गरड़ घर्राय
चकिया गरड़-गरड़ घर्राय,
पिसनो कैसें पीसैं हाय।
दैया मका न पीसी जाय……
भारी पाट हात भये डट्टा, पकरत डढ़ा पिरावैं हात।
अपने बबुल की रई लड़ै़ती,सैंया सुनै नाय कोऊ बात ॥
लगत भुरारें उइरैं चकिया,
मन की दैया कि नै सुनाय॥
दैया मका न पीसी जाय……
चून पसेरी पौहंन दाना, हेंउत की रात कटाकट दांती।
टपटप देही चुये पसीना , ननदो देखि न फूली समांती॥
रहि-रहि सासु अंगार उगलती,
नय चकिया हम पै चलै चलाय॥
दैया मका न पीसी जाय……
सूज्ज चढ़े लौं बोलैं ननदी, सासुल देतीं ताने।
अपुन आ पिसती गेऊँ बाजरा, हमकौं मका के दाने॥
काह लिखी मेरे भाग बिधाता,
आंखिन आंसू मधुर ढ़ार जाय॥
दैया मका न पीसी जाय……
प्रखर दीक्षित
फरक्काबाद
सोहर
सोहर शब्द अपने क्षेत्र में सोंरि,सौंरि का शिष्ट रूप है,प्रसव होने के बाद या इससे पूर्व आसन्न समय में या बच्चे के ज तयन्म पर गाए जाते हैं। बच्चे के जन्म संस्कार पर जनने गाए जाते हैं।यह शब्द जनना= पैदा होना,जन्म लेने से निसृत है।जन्म के बाद गाँव में पूर्व समय में कनउजी क्षेत्र में धानुक की पत्नी ( धनकुनें) दाई (धाय) का कार्य करतीं थीं। अब तो सरकारी योजनाओं ने साफ- सफाई और सुरक्षित प्रसवों के लिए चिकित्सालयों में भेजना आवश्यक कर दिया। यह सामाजिक रूप से आवश्यक भी हो गया,ताकि नयी पीढी स्वस्थ हो। इन लोकगीतों में प्रसवा (जापे की महिला) की सासु,ननद, जेठानी,धनकुन के साथ नेग मांगने पर हुई नोंक- झोंक और प्रसवा की असहनीय पीडा का वर्णन मिलता है। औरतें छठी के दिन खूब नाचतीं – गातीं हैं।बालक के होने पर खुशियां अपार होतीं हैं इतनी लडकी के होने पर नहीं।अब सब गायब कम से नयी पीढी में गायन तो स्थानान्तरित हो।
जनना( सोहर) :- ललन भये रातें हाँ नीको लागइ।
सासू जो आवइं चरुआ धरावइं,
चरुआ धराई नेगु हँसुली को मांगइं।
जिठनी जो आवइं पिपरें पिसावइं।
पिपरें पिसाई नेगु कंगनन को मांगइं।
ननदो आवइं ललनइं कजरा/ ढटौना लगावइं।
कजरा लगाई नेगु हरवा को मांगइं।
दिवरा जो आवइं तिरवा / तीर जो मारइं।
तीर चलाई नेगु अंगूठी को मंगाइं।ललन भए।
डाॅ बी के चन्द्रसखी
दै देओ भाभी रानी अपने कंगना।
सोहर
कंगना -कंगना मत कर ननदी , चढ़ने न दौंगी अपने अंगना
दै देओ भाभी रानी अपने…
कंगना-कंगना मत कर ननदी , छूने न दौंगी अपुनो ललना
दै देओ भाभी रानी अपने…
अंगना नाय तुम्हारे बबुल को, हमरे बबुल को है अंगना
दै देओ भाभी रानी अपने…
ललना नाहीं है तुम्हरे बबुल को, हमरे बरन को है ललना
दै देओ भाभी रानी अपने…
ललना ललना मतकर ननदी, छूने न दियूंगी अपुनो पलना
दै देओ भाभी रानी अपने…
पलना नायें भाभी तुम्हरे सजन को, हमरे सजन लाये पलना
दै देओ भाभी रानी अपने…
भीतर सैं फेंके आंगन खन्नाने ,लै जाओ ननदो हाय दैया कंगना
दै देओ भाभी रानी अपने…
जुग-जुग जियें भौजिया-भैया, जुग-जुग जिये हमारो ललना
दै देओ भाभी रानी अपने…
रचना –
वंदना रश्मि तिवारी, इटावा
सोहर
घर बाजैं बधाए सुनौ ना,
ललन भये भौजी के अंगना॥
ननद रानी मांगैं हाय दैया कंगना…
जो देवैं सो ले लै ओ ननदी
भैया तुम गये नाय द़ई नगदी
मन जाओ रानी करौ ठनगन ना॥
ननद रानी मांगैं हाय दैया कंगना…
मांगैं हरवा लांहगा चुनरी
बाजूबंद पैंजनी तिलरी
दींहैं धुतिया छोड़ हम कछु ना॥
ननद रानी मांगैं हाय दैया कंगना…
काजर लगाई मैंय बेला लीहैं
भरि भरि अचरा आसिस दीहैं
मेरो जुग जुग जिये भौजी ललना॥ ननद रानी मांगैं हाय दैया कंगना…
प्रखर दीक्षित
अंगना में भयी धूमधामी,भले राजा तुमने ना जानी
ससुरा हमारे ने हाथी लुटाए
ऐ महवत रहि गये निसानी भले राजा तुमने ना जानी
अंगना में भयी धूमधामी भले राजा तुमने ना जानी
जेठा हमारे ने घोड़े लुटाए
ऐ चाबुक रहि गये निसानी भले राजा तुमने ना जानी
देवरा हमारे ने रंडी नचाई
ऐ घुंघुरू रहि गये निसानी भले राजा तुमने ना जानी
डा अपूर्वा अवस्थी
Volume 1 • Issue 1 • Jan–Mar 2026